मेरी लिखी जा रही पुस्तक
"नए व्यापार के लिए मार्गदर्शिका/ पथप्रदर्शिका - बातें जिन्हें जानकर एक नया व्यवसाई भविष्य में आने वाले खतरों से बच सके" (“A guide to business start-up” – Things a new businessperson should know to avoid costly consequences ")
की एक झलक
किसी ने सच ही कहा है की "नौकरी आठ घंटे का व्यापार है और व्यापार चौबीस घंटे की नौकरी". अगर आप इस बात पर गौर करेंगे तो पाएंगे की यह बात कमोबेश सच ही है. नौकरी करने वाले को इस बात का ध्यान रखना होता है की वह अपने काम पर समय पर पहुँच जाय और सौंपा गया काम मेहनत और ईमानदारी से करे. यह निश्चित होता है की समय पर उसे वेतन मिल जायेगा.
वहीं दूसरी तरफ एक व्यापारी को न सिर्फ अपने कर्मचारियों के वेतन के भुगतान का ध्यान रखना पड़ता है बल्कि और भी अनगिनत बातों का ध्यान रखना पड़ता है, माल खरीदने से बेचने तक, बेचे हुए माल की वसूली का, निर्धारित समय पर राजस्व या कर के भुगतान का इत्यादि. आइये हम इन बातों को मूल रूप से देखने की कोशिश करते हैं. मैंने खुद ने व्यापार तो नहीं किया है लेकिन मैं स्वरोजगार में हूँ और व्यापारियों के संपर्क में शुरू से ही रहा हूँ और अब तो व्यापारियों का सलाहकार हूँ. सो व्यापार और व्यापारियों के बारे में लिखने की कोशिश कर रहा हूँ. कहते हैं की 'हिम्मते मर्दां, मददे खुदा'.
क्या व्यापार सीखा जा सकता है? क्या हर व्यक्ति में वह गुण मौजूद है जो की एक सफल व्यापारी में होने चाहिए? क्या कारण है की प्रायः कम पढ़े लिखे लोग ही सफल व्यवसायी / व्यापारी बनते हैं? क्या कारण है की अधिकतर उच्च शिक्षा प्राप्त लोग यहाँ तक की MBA भी नौकरी करना ही पसंद करते हैं? क्योंकर पढ़े लिखे लोग अधिकतर नौकरी करते हैं?
"पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुवा पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय" यह एक शास्वत सत्य है. जानकारी होने से कोई महान नहीं बन सकता है. जानकारी का उपयोग करना आना ही सबसे कठिन काम है और एक सफल व्यापारी बनने के लिए यह अति आवश्यक होता है. पुस्तकालय में ढेरों किताबें होती है लेकिन देखा जाय तो librarian या पुस्तक विक्रेता इसका लाभ नहीं उठा पाते है जबकि किताब लेकर जाने वाले किताब के ज्ञान का फायदा उठा लेते हैं. ज्यादा पढ़े लिखे लोग या तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाते हैं और ज़रुरत से ज्यादा सोचने में लग जाते हैं या फिर जोखिम उठाने की उनकी क्षमता ही नहीं होती है. व्यापार में ऐसा भी होता है की "कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना". एक मर्यादा तक सोचना जरूरी है लेकिन सही समय पर निर्णय लेकर अमल में लाना उससे भी ज्यादा जरूरी है. इसी कारण "ले जायंगे ले जायेंगे दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे, रह जायेंगे रह जायेंगे पैसे वाले देखते रह जायेंगे". ऐसा अक्सर होता है की पास में धन रहकर भी लोग सुअवसर मिलने पर भी उसका उपयोग नहीं कर पाते हैं और जो समझदार हैं वह सही स्थिति भांपकर धन न रहने पर धन का जुगाड़ भी कर लेते हैं.
किस प्रकार का व्यापार अधिक समय तक चल सकता है और मुनाफा दे सकता है? सही समय का व्यापार में क्या महत्व है? दूरदृष्टि का व्यापार में क्या महत्व है? क्या एक व्यापारी को सफलता प्राप्त करने के लिए दूरदृष्टा होना आवश्यक है?
आप जो सेवा देने वाले हैं या जो पदार्थ उत्पन करने वाले हैं उसकी उपयोगिता और मांग यदि कम है तो वह व्यापार आपको ज्यादा लाभ नहीं देगा. तो आपको ऐसे व्यापार का चुनाव करना चाहिए जिस वस्तु की मांग बढती रहे और उसके उपयोग भी भिन्न भिन्न प्रकार के हों. यदि आपके उत्पाद की देश विदेश सब जगह माँग हो तो फिर कहना ही क्या? कई बार ऐसा होता है की कोई नई चीज बाज़ार में आती है और कई लोग उसको बनाने में लग जाते हैं. इस चक्कर में उस वस्तु की बिक्री से मुनाफे की गुंजाईश कम हो जाती है. आपको यह निश्चित करना चाहिए की आपका उत्पाद आपके प्रतियोगियों के उत्पाद के मुकाबले में ना सिर्फ अच्छा होना चाहिए बल्कि ज्यादा महँगा भी नहीं. perrfection की कोशिश करना अच्छी बात है लेकिन कहीं ना कहीं से शुरुवात भी करना जरूरी है. कहीं ऐसा ना हो की परफेक्ट टाइम और परफेक्ट चीज के चक्कर में सब कुछ हाथ से निकाल जाय जैसे इनके साथ हुवा. एक सज्जन मिले. बड़े मिलनसार थे. परिवार के बारे में पूछने पर पता चला की अबतक अकेले हैं. आगे बातचीत होने पर मालूम पड़ा की वह विवाह के लिए परफेक्ट स्त्री को तलाश रहे थे. हमने पूछा तो फिर क्या कोई परफेक्ट स्त्री मिली क्या. तो उन्होंने कहा हाँ मिली थी. तो हमने पूछा फिर आपकी शादी क्यों नहीं हुई. वह कहने लगे की वह भी एक परफेक्ट पुरुष की तलाश में थी.
क्या एक व्यापारी को धन प्रबंधन की जानकारी होनी चाहिए? कितना धन व्यापार के लिए आवश्यक होता है? आवश्यकता से कम या अधिक होने के क्या परिणाम या दुष्परिणाम हो सकते हैं?
व्यापार शुरू करने के पहले यह देख लेना चाहिए की व्यापार करने के लिए पर्याप्त धन आपके पास हैं या नहीं वरना 'जल संकोच विकल भाई मीना अबुध कुटुम्बी जिमी धन हीना' वाला हाल हो सकता है और आप अपनी जमा पूंजी भी खो बैठेंगे.
कितना धन चाहिए इसके बारे में कोई परफेक्ट फ़ॉर्मूला नहीं होता है. आपको अपने व्यापार की धन की आवश्यकता को जानने के लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट बना लेनी चाहिए और कितना धन किस किस चीज के लिए लगने वाला है और कहाँ कहाँ से आने वाला है यह निश्चित कर लेना चाहिए. इसमें थोडा cushioning और alternate का प्रावधान भी होना चाहिए ताकि किसी एक स्रोत से पैसा ना मिलने पर दुसरे स्रोत से ले सकें. कुल मिलाकर इतना प्रबंध हो जाना चाहिए की "साईं इतना दीजिये जमे कुटुंब समाय मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय." जरूरत से ज्यादा धन का व्यापार में होना भी नुकसान दायक होता है; इससे धन प्रबंधन में चुस्ती के बजाय शिथिलता आ जाती है जो की दीर्घकाल में हानिकारक होती है.
साख क्या है और कैसे बनाई जाती है? साख के न होने या साख के खोने के क्या परिणाम हो सकते हैं?
बुजुर्गों ने कहा है की "नामी चोर मर खाए और नामी साहूकार कमा के खाए". जब भी कहीं चोरी होती है तो पुलिस usual suspects को पकड़ कर मारपीट करती है और पूछताछ करती है. इसी तरह जिस व्यापारी की साख होती है उसे माल भी उधार में मिल जाता है और लोग नकद पैसा देकर या अग्रिम पैसा देकर माल खरीदते हैं. और यदि साख ना हो तो हमेशा पैसा पहले देना पड़ता है. साख के अनगिनत लाभ हैं और ना होने के नुकसान ही नुकसान हैं. तो यह साख मिलती कहाँ है? साख कहीं मिलती नहीं है बल्कि आपको अपने साफ सुथरे व्यवहार और लेन देन से और अपने माल की उच्च गुणवत्ता से बनानी पड़ती है. आपने अगर सौदा कर लिया तो चाहे लाभ हो या हानि आप उसे तोड़ेंगे नहीं, यह विश्वास अगर आपसे व्यव्हार करने वालों को है तो इसका मतलब है की आपकी बाज़ार में साख है. जहाँ साख की बात आती है वहां " चन्द्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार । पै दृढ़ श्री हरिचन्द्र कौ, टरै न सत्य विचार ।। " को जरूर याद किया जाता है.
क्या व्यापार बिना सरदर्द के किया जा सकता है?
यदि आप अपना व्यापार प्लानिंग से करते हैं और अल्प लाभ के लिए दीर्घकालिक लाभ कुर्बान नहीं करते हैं. समय पर काम को निपटाते हैं. कानूनों का पालन करते हैं और समय पर कर भरते हैं. लालच में पड़ कर गलत काम नहीं करते हैं तो आप को व्यापार कतई सर दर्द नहीं देगा. यदि आप अपने व्यापार मे खुश नहीं है तो फिर आपको ख़ुशी अन्यत्र ढूंढनी पड़ेगी और इस चक्कर में आप बुरी लतों में भी फँस सकते हैं. यदि आप समय पर भोजन नहीं कर रहे हैं, दिन भर चाय काफी पीते रहते हैं, रात को देर से घर लौटते हैं और खाना खा कर पसर जाते हैं और दुसरे दिन देर से उठ कर भाग दौड़कर दफ्तर पहुंचते हैं; अपने परिवार के लिए यदि आप समय नहीं निकाल सकते हैं और साल में एक बार उनके साथ विदेश यात्रा करके अपने जिम्मेदारी की इतिश्री करते हैं; तो समझिये व्यापार आपको रास नहीं आ रहा है. उपाध्याय जी कहते हैं की दुनियाँ में ढाई सुख हैं. पहला सुख रात को नींद ठीक से आना, दूसरा सुख सुबह पेट साफ होना. बाकी आधे सुख में सारी दुनियाँ के सुख हैं. यदि आप ठीक समय पर खायेंगे नहीं और सोयेंगे नहीं तो फिर पेट भी साफ नहीं होगा और इस प्रकार आप जीवन के संसार के सुखों से वंचित रह जाओंगे. दुनियां देखती रहेंगी की आप कितने बड़े बंगले में रहते हैं, कितनी बड़ी गाड़ी में घूमते हैं, लेकिन उन्हें क्या पता की आप कितने दुखी हैं. "आये हैं सो जायेंगे राजा रंक फकीर, कोई सिंघासन चढ़ी चले कोई बंधे जंजीर."
हर प्रकार के व्यापार पर कई प्रकार के कर लगते हैं? एक व्यापारी को आयकर, विक्री कर, उत्पाद शुल्क, सेवा शुल्क की क्या जानकारी होनी चाहिए?
चाणक्य ने कहा था राजा ने कर ऐसे वसूलना चाहिए जैसे मधुमक्खी फूल से मधु लेती है. यह उक्ति अगर आज के परिवेश में सही ना भी बैठती हो तो भी हर नागरिक का कर्तव्य है की वह अपने देश के कानून का पालन करे. इस पालन में करों का भुगतान एक बड़ा विषय है. समय पर कर के भुगतान ना करने से ब्याज व दंड का भुगतान करना पड़ता है जो की व्यापार के लाभ में कमी लाता है. हर व्यापारी को यह जानकारी होना जरूरी है की उनको कौन कौन से करों के लिए किन किन विभागों में पंजीकरण करवाना है, वार्षिक कितनी बिक्री करमुक्त है, कर भरने की तारीख व विवरणी भरने की अंतिम तिथि, इन सब चीजों का ज्ञान अत्यावश्यक है.
हर छोटे बड़े व्यापार में कई लोगों का योगदान होता है और कर्मचारी इसमें प्रमुख हैं? कर्मचारी को नियुक्त करने से उसके सेवा निवृत्त होने तक किन किन कानूनों का पालन करना होता है? कर्मचारी कानून की कितनी जानकारी एक व्यापारी को होनी चाहिए?
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है. आप चाहे कितने भी बुद्धिमान या बलवान या प्रसिद्ध क्यों ना हो आपको अपने व्यापार के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता होती है. प्रभु रामचंद्र को भी लंका विजय के लिए वानरों और रीछों की मदद लेनी पड़ी थी. यदि आप कुशल और इमानदार लोगों को अपने व्यापार में नियुक्त करते हैं और उनका योग्य प्रशिक्षण करते हैं, उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं तो आपको कभी निराश नहीं होना पड़ेगा. वहीं आपने यदि कर्मचारियों के नियुक्ति में सावधानी नहीं बरती तो आपका व्यापार चौपट होते देर नहीं लगेगी. उनकी सुख सुविधाओं का ध्यान रखते समय यह भी ध्यान रखा जाय की वह अपने कर्तव्यों/ जिम्मेदारी से विचलित ना हों. इसके लिए performance based incentives देना हितकर होता है. ऐसा ना हो की घोड़े की घास से दोस्ती हो जाय और दोस्ती निभाने के चक्कर में वह भूखा ही रह जाय. विभिन्न कानूनों के अंतर्गत कर्मचारियों के अधिकारों की जानकारी आपके कर्तव्यों की जानकारी होने से आप ऐसा कोई कदम नहीं उठाते हैं जिससे की आपको लेबर कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े और बिना काम किये कर्मचारी को वेतन देना पड़े.
क्या एक व्यापारी को लागत या पड़ता निकालना आना आवश्यक है? सही प्रकार से पड़ता न निकालने के क्या परिणाम या दुष्परिणाम हो सकते हैं?
व्यापार का मुख्य उद्देश धन कमाना है. यदि आप सस्ते में खरीदकर महंगे में बेचते हैं तो आपको लाभ होता है और इसका उल्टा होने पर हानी होती है. जहाँ तक खरीदने बेचने का सवाल हैं लागत या पड़ता निकालना कठिन नहीं होता है. लेकिन जहाँ कई प्रकार के उत्पाद बनाने की बात आती है तो उसकी लागत और पड़ता निकालने में कई प्रकार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागतों को ध्यान में रखना होता है. सही प्रकार से लागत मूल्य की जानकारी का ना होना हानी का कारण और व्यापार के बंद होने का कारण भी बन सकता है. ध्यान रहे की "आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया" नहीं होना चाहिए.
एक व्यापारी को वित्तीय लेखांकन की जानकारी क्यों और कितनी आवश्यक है?
वित्तीय लेखा व्यापार की वित्तीय स्थिति का दर्पण होता है. यदि आप वित्तीय लेखा में तज्ञ हैं तो आप अपने वित्तीय पत्रों से अपने व्यापार की वित्तीय स्थिति का जायजा ले सकते हैं और आपका व्यापार लाभ या हानी की और अग्रसर हो रहा है यह मालूम कर सकते हैं और आने वाली वित्तीय आपदा से बच सकते हैं. "तोरा मन दर्पण कहलाये, भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए".
व्यापार के संगठन कौन कौन से हैं और उसका चुनाव करते समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?
कोई भी व्यापार जब शुरू होता है तब छोटा ही होता है. इसीलिए शुरुवात में चाहे जो भी फॉर्म ऑफ़ organisation हो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. यदि आप अकेले मालिक हैं तो आप proprietorship में काम शुरू कर सकते हैं. यदि आप और लोगों के साथ मिलकर व्यापार कर रहे हैं तो भगीदारी या कंपनी बना कर कार्य शुरू कर सकते हैं. सही चुनाव के लिए आपको प्रत्येक व्यापार संगठन के लाभ व मर्यादाओं की जानकारी होनी आवश्यक होती है. प्रायः देखने में आया है की "प्राइवेट लिमिटेड कंपनी" का चुनाव लम्बे समय तक चलने वाले व्यापार के लिए अधिक उपयुक्त पाया गया है.
व्यापार का बीमा करना क्यों आवश्यक है और सही बीमा न करने से क्या नुकसान हो सकता है?
दुनियां में कुछ भी निश्चित नहीं है सिवाय अनिश्चितता के. कभी भी कुछ भी हो सकता है. एक त्सुनामी आती है और शहर का शहर डूब सकता है. ऐसे में यदि आपने अपने व्यापार और उत्पादन इकाई व उसमें रखे सामान का बीमा नहीं कराया है तो आपका तो बंटाधार हो जायेगा. उसी प्रकार चोरी, आग और विभिन्न प्रकार के कारणों से होने वाले नुकसानों को उपयुक्त प्रकार के बीमे कर लेने से नुकसान होने पर मुआवजा प्राप्त किया जा सकता है. वरना यही गाते रह जायेंगे "ज़िन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मकाम वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते".
व्यापार चाहे जिस किसी चीज का हो जमीन और भवन की आवश्यकता पड़ती है. जमीन के चुनाव और खरीदने के समय किस प्रकार की सावधानी बरतनी चाहिए? भवन बनाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
जमीन खरीदते समय यह ध्यान रखना जरूरी है की वह उत्पादन इकाई के निर्माण के लिए पर्याप्त होगी व आगे आने वाले समय में विस्तार के लिए भी समुचित होगी. सरकार द्वारा Industrial Development के लिए हर जिले में जमीन उपलब्ध कराइ जाती है जो की किफ़ायत दर पर ९९ वर्षों के पट्टे (lease ) पर दी जाती है. यदि सरकारी जमीन उपलब्ध ना हो तो यह देख लेना जरुरी है की वहां तक पहुँचने के लिए रोड अच्छे हैं और वह या तो कच्चे माल के उपलब्ध होने की जगह के पास हो या फिर बने माल की खपत वाली जगह, या कोई बड़ा व्यापार केंद्र. जिससे समान लेन ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की सुविधा होती है. ऐसे और भी कई मुद्दों पर ध्यान देना जरूरी होता है. जमीन ऐसी भी ना हो की वर्शारितु में बाढ़ का पानी ही भरा रहे. भवन बनाते समय यह सावधानी बरतनी चाहिए की भविष्य में यदि विस्तार करें तो तोड़ फोड़ की कम से कम आवश्यकता पड़े.
आज हम ज्ञान अर्थव्यवस्था के युग में जी रहे हैं. एक व्यापारी को यह जानना आवश्यक है की उनका बौद्धिक सम्पदा अधिकार क्या हैं और उनकी रक्षा के लिए उन्हें क्या करना चाहिए?
आप यदि अपने उत्पाद को किसी trade mark के अंतर्गत बेचते हैं तो आपको चाहिए की पंजीकरण कर लिया जाय. पंजीकरण करने से आप उस trade mark का उपयोग बिना किसी रोक टोक के अपने व्यापार के लिए कर सकेंगे और आपकी साख व ख्याति का फायदा आपके व्यापार को लम्बे समय तक मिलता रहेगा. उसी प्रकार कॉपी राईट व patent पंजीकरण आपके द्वारा सृजित बौद्धिक सम्पदा अधिकारों की रक्षा करता है.
आपके कॉरपोरेट कस्टमर्स एंड सप्लायर्स के बारे में आपको क्या जानकारी रखनी चाहिए?
जब भी आप किसी कंपनी के साथ लेन देन करते हैं तो यह निश्चित कर लें की वह कंपनी वाकई में पंजीकृत है या नहीं. उस कंपनी का पंजीकृत कार्यालय कहाँ है और उस कंपनी के निदेशक कौन हैं? इन चीजों की जानकारी आने वाले समय में आपके लिए लाभदायक सिद्ध होगी.
क्या एक व्यापारी को पर्यावरण कानून की जानकारी होनी चाहिए या पर्यावरण के प्रति उसकी जिम्मेदारी क्या है?
”रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सून ! पानी गए न उबरे, मोती मानुस चून !” औद्योगिक इकाइयों द्वारा उत्पादन में पानी का भरपूर उपयोग होता है लेकिन कईयों द्वारा की गई जिम्मेदाराना हरकतों के कारण पानी के श्रोत जहरीले होते जा रहे हैं और मानव जाति के विनाश का खतरा पर्यावरण के विनाश के साथ दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है. पर्यावरण कानून, उनकी जानकारी और ईमानदारी से पालन करना हर व्यक्ति और हर व्यापारी का कर्तव्य है और इसे पालन कर के कानून द्वारा दण्डित होने से बचा जा सकेगा.
इसके अलावा भी कई प्रकार की जानकारियां व्यापार विशेष को लेकर होती है जिसकी जानकारी का होना एक व्यापारी को अपनी कानूनी जिम्मेदारी निभाने और हानि से बचने और लाभ के बढ़ाने में सहयोगी होती है जैसे:
कुछ विशेष प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए और पिछड़े इलाकों में रोजगार मुहैया करवाने के हिसाब से लगाने वाली इकाइयों को सरकार द्वारा सब्सिडी और कर रियायतें दी जाती है. किन उत्पादों के उत्पादन से व किन स्थानों पर उत्पादन इकाई लगाने से रियायतें मिलती है, शुरुवात से इन बातों की जानकारी होने से इकाई के लगाने के स्थान के चुनाव में, पूंजी की जरूरत के बारे में निर्णय लेने में और लागत मूल्य के आकलन करने में सुविधा होती है. उसी प्रकार विदेश से माल आयत करना हो या उत्पादित माल निर्यात करना हो तो फेमा व इम्पोर्ट एक्सपोर्ट से सम्बंधित कानून व माल भेजने व मंगवाने की प्रक्रियाओं व उसमे लगने वाले समय की मुलभुत जानकारी आवश्यक है.
जो व्यापारी उत्पादित वस्तुओं को पैक करके रिटेल में बेचते हैं उन्हें पेकेट में कितनी सामग्री भरी जाय, किस प्रकार के पेकेट इस्तेमाल किया जाएँ, पेकेट पर क्या जानकारी देनी चाहिए इन सब बातों के जानकारी होनी आवश्यक है.
एक व्यापारी जब दुसरे व्यापारी के साथ जो भी लेन देन का व्यवहार करता हैं वह अनुबंध कानून के अंतर्गत आता है. अनुबंध कानून की मुलभुत जानकारी हर व्यापारी को होनी ही चाहिए.
यदि आपका बेचा हुवा माल दर्शित गुणवत्ता का नहीं है और उसके कारण यदि आपके उपभोक्ता का नुकसान होता है तो वह आपके ऊपर नुकसान की भरपाई के लिए मुक़दमा दायर कर सकता है. इससे निपटने के लिए आपको उपभोक्ता संरक्षण कानून के विभिन्न पहलुओं का मुलभुत ज्ञान आवश्यक है.
अपने सलाहकार कैसे चुनें और उनके साथ कैसा व्यव्हार करें?
गोस्वामी तुलसीदास जी ने सुन्दरकाण्ड में कहा है की "सचिव बैद गुरु तीन जौं प्रिय बोलहि भय आस, राज धर्म तन तीन कर होहि बेगहि नास." यह उक्ति सिर्फ रावण के लिए ही नहीं बल्कि हर काल के हर राजा और हर व्यक्ति के लिए समान रूप से लागू है. आप अपने सलाहकार का चयन करते समय यह देख लें की उनकी निपुणता और साख कैसी है. इसके बाद अप उनकी सलाह को सुनें और जहाँ तक हो सके अमल में लायें. ऐसा जरूरी नहीं की उनकी हर सलाह का अक्षरशः पालन कर सकते हैं. लेकिन कभी उनका मान भंग ना हो इसकी भी सावधानी बरतें. चाकू चाहे फल पर गिरे या फल चाकू पर, कटना तो फल को ही है.
आखिर धन का सही उपयोग क्या है?
जीवन के तीन मुख्य अवस्थाएं हैं, बचपन, जवानी और बुढ़ापा. बचपन में समय और उर्जा बहुत होती है लेकिन पैसा नहीं रहता है. जवानी में उर्जा और पैसा दोनों रहते हैं पर समय नहीं होता है. बुढ़ापे में पैसा और समय तो बहुत होता है पर उर्जा में कमी आ जाती है. यानि की दाँत है तो चने नहीं है और चने है तो दाँत नहीं है. प्रायः यह देखा गया है की मनुष्य जीवन भर धन कमाने में लगा रहता है लेकिन जब बुढ़ापा पास आता है तो कमाए धन को परोपकार में लगाने की कोशिश करता है. क्योंकि "पूत कपूत तो क्यों धन संचय; पूत सपूत तो क्यों धन संचय." में सभी विश्वास करते हैं और जहाँ तक बन सके अपने बच्चों को धन से ज्यादा सद्गुण व अच्छी परवरिश देने की कोशिश करते हैं. Warren Buffet और Bill Gates जैसे विश्वप्रसिद्ध और अति धनवानों ने अपने जीवन में बहुत धन कमा लिया. अब वह कमाए धन को परमार्थ में लगाने की चेष्टा कर रहे हैं. इससे यह सिद्ध होता है की सिर्फ धन कमाना ही जरूरी नहीं है बल्कि उसका सदुपयोग उससे भी महत्वपूर्ण है. "एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल".
व्यापार और उसकी सामाजिक जिम्मेदारी: व्यापार के लिए लगने वाली जमीन, भवन, वस्तुएं और अन्य सामग्री और लोग समाज और पर्यावरण से आते हैं इसीलिए व्यापार की सामाजिक जिम्मेदारी एक साधारण व्यक्ति से ज्यादा होती है. आजकल CSR (Corporate Social Responsibility ) की बात तो बहुत होती है लेकिन हमारे देखते देखते शिक्षा और स्वस्थ्य जैसे जीवन की मुलभुत आवश्यकताओं को लाभ की बलि चढ़ा दिया गया. पहले CSR शब्द तो प्रचलित नहीं था लेकिन व्यापारी लोग अपनी जिम्मेदारी समझकर जगह जगह स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, प्याऊ, धर्मशाला इत्यादि बनाते और धर्मार्थ चलते थे जिससे समाज के सारे लोगों को लाभ मिलता था. सिर्फ धन कमाने और संचय करने तक ही वे लोग सीमित नहीं रहते थे. ऐसा नहीं है की आजकल अच्छे काम नहीं हो रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है की आजकल "खाते चने हैं बताते बादाम है" यानि दिखावे की प्रवृत्ति अधिक हो गई है.
मैं एक पुस्तक लिख रहा हूँ जिसका शीर्षक "नए व्यापार के लिए मार्गदर्शिका/ पथप्रदर्शिका - बातें जिन्हें जानकर एक नया व्यवसाई भविष्य में आने वाले खतरों से बच सके". जिन मुद्दों और विषयों का इस पुस्तक में समावेश होगा उनकी एक झलक मैंने इस लेख के द्वारा देने की चेष्टा की है. आगे आने वाले अंकों में मैं एक एक कर सारे विषयों पर चर्चा करूँगा. मैं चाहता हूँ की मैंने जो ज्ञान अपने जीवन में पाया है और अनुभव प्राप्त किये हैं उन्हें आप लोगों से बांटूं और इसके द्वारा किसी को लाभ हो तो इसके मुझे बेहद ख़ुशी होगी. आगे आने वाले जीवन में मैं मार्गदर्शक का किरदार अदा करना चाहता हूँ और उच्च शिक्षार्थियों को भी अपने अनुभव का लाभ देना चाहता हूँ. उच्च शिक्षा संस्थानों के आमंत्रण पर मैं इन विषयों पर व्याख्यान देना पसंद करूँगा. आपको यह लेख कैसा लगा और इसमें किन चीजों पर किस प्रकार की जानकारी की आपकी अपेक्षा है मुझे मेरे ईमेल asawaramanuj@gmail.com पर जरूर लिखें.
"नए व्यापार के लिए मार्गदर्शिका/ पथप्रदर्शिका - बातें जिन्हें जानकर एक नया व्यवसाई भविष्य में आने वाले खतरों से बच सके" (“A guide to business start-up” – Things a new businessperson should know to avoid costly consequences ")
की एक झलक
किसी ने सच ही कहा है की "नौकरी आठ घंटे का व्यापार है और व्यापार चौबीस घंटे की नौकरी". अगर आप इस बात पर गौर करेंगे तो पाएंगे की यह बात कमोबेश सच ही है. नौकरी करने वाले को इस बात का ध्यान रखना होता है की वह अपने काम पर समय पर पहुँच जाय और सौंपा गया काम मेहनत और ईमानदारी से करे. यह निश्चित होता है की समय पर उसे वेतन मिल जायेगा.
वहीं दूसरी तरफ एक व्यापारी को न सिर्फ अपने कर्मचारियों के वेतन के भुगतान का ध्यान रखना पड़ता है बल्कि और भी अनगिनत बातों का ध्यान रखना पड़ता है, माल खरीदने से बेचने तक, बेचे हुए माल की वसूली का, निर्धारित समय पर राजस्व या कर के भुगतान का इत्यादि. आइये हम इन बातों को मूल रूप से देखने की कोशिश करते हैं. मैंने खुद ने व्यापार तो नहीं किया है लेकिन मैं स्वरोजगार में हूँ और व्यापारियों के संपर्क में शुरू से ही रहा हूँ और अब तो व्यापारियों का सलाहकार हूँ. सो व्यापार और व्यापारियों के बारे में लिखने की कोशिश कर रहा हूँ. कहते हैं की 'हिम्मते मर्दां, मददे खुदा'.
क्या व्यापार सीखा जा सकता है? क्या हर व्यक्ति में वह गुण मौजूद है जो की एक सफल व्यापारी में होने चाहिए? क्या कारण है की प्रायः कम पढ़े लिखे लोग ही सफल व्यवसायी / व्यापारी बनते हैं? क्या कारण है की अधिकतर उच्च शिक्षा प्राप्त लोग यहाँ तक की MBA भी नौकरी करना ही पसंद करते हैं? क्योंकर पढ़े लिखे लोग अधिकतर नौकरी करते हैं?
"पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुवा पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय" यह एक शास्वत सत्य है. जानकारी होने से कोई महान नहीं बन सकता है. जानकारी का उपयोग करना आना ही सबसे कठिन काम है और एक सफल व्यापारी बनने के लिए यह अति आवश्यक होता है. पुस्तकालय में ढेरों किताबें होती है लेकिन देखा जाय तो librarian या पुस्तक विक्रेता इसका लाभ नहीं उठा पाते है जबकि किताब लेकर जाने वाले किताब के ज्ञान का फायदा उठा लेते हैं. ज्यादा पढ़े लिखे लोग या तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाते हैं और ज़रुरत से ज्यादा सोचने में लग जाते हैं या फिर जोखिम उठाने की उनकी क्षमता ही नहीं होती है. व्यापार में ऐसा भी होता है की "कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना". एक मर्यादा तक सोचना जरूरी है लेकिन सही समय पर निर्णय लेकर अमल में लाना उससे भी ज्यादा जरूरी है. इसी कारण "ले जायंगे ले जायेंगे दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे, रह जायेंगे रह जायेंगे पैसे वाले देखते रह जायेंगे". ऐसा अक्सर होता है की पास में धन रहकर भी लोग सुअवसर मिलने पर भी उसका उपयोग नहीं कर पाते हैं और जो समझदार हैं वह सही स्थिति भांपकर धन न रहने पर धन का जुगाड़ भी कर लेते हैं.
किस प्रकार का व्यापार अधिक समय तक चल सकता है और मुनाफा दे सकता है? सही समय का व्यापार में क्या महत्व है? दूरदृष्टि का व्यापार में क्या महत्व है? क्या एक व्यापारी को सफलता प्राप्त करने के लिए दूरदृष्टा होना आवश्यक है?
आप जो सेवा देने वाले हैं या जो पदार्थ उत्पन करने वाले हैं उसकी उपयोगिता और मांग यदि कम है तो वह व्यापार आपको ज्यादा लाभ नहीं देगा. तो आपको ऐसे व्यापार का चुनाव करना चाहिए जिस वस्तु की मांग बढती रहे और उसके उपयोग भी भिन्न भिन्न प्रकार के हों. यदि आपके उत्पाद की देश विदेश सब जगह माँग हो तो फिर कहना ही क्या? कई बार ऐसा होता है की कोई नई चीज बाज़ार में आती है और कई लोग उसको बनाने में लग जाते हैं. इस चक्कर में उस वस्तु की बिक्री से मुनाफे की गुंजाईश कम हो जाती है. आपको यह निश्चित करना चाहिए की आपका उत्पाद आपके प्रतियोगियों के उत्पाद के मुकाबले में ना सिर्फ अच्छा होना चाहिए बल्कि ज्यादा महँगा भी नहीं. perrfection की कोशिश करना अच्छी बात है लेकिन कहीं ना कहीं से शुरुवात भी करना जरूरी है. कहीं ऐसा ना हो की परफेक्ट टाइम और परफेक्ट चीज के चक्कर में सब कुछ हाथ से निकाल जाय जैसे इनके साथ हुवा. एक सज्जन मिले. बड़े मिलनसार थे. परिवार के बारे में पूछने पर पता चला की अबतक अकेले हैं. आगे बातचीत होने पर मालूम पड़ा की वह विवाह के लिए परफेक्ट स्त्री को तलाश रहे थे. हमने पूछा तो फिर क्या कोई परफेक्ट स्त्री मिली क्या. तो उन्होंने कहा हाँ मिली थी. तो हमने पूछा फिर आपकी शादी क्यों नहीं हुई. वह कहने लगे की वह भी एक परफेक्ट पुरुष की तलाश में थी.
क्या एक व्यापारी को धन प्रबंधन की जानकारी होनी चाहिए? कितना धन व्यापार के लिए आवश्यक होता है? आवश्यकता से कम या अधिक होने के क्या परिणाम या दुष्परिणाम हो सकते हैं?
व्यापार शुरू करने के पहले यह देख लेना चाहिए की व्यापार करने के लिए पर्याप्त धन आपके पास हैं या नहीं वरना 'जल संकोच विकल भाई मीना अबुध कुटुम्बी जिमी धन हीना' वाला हाल हो सकता है और आप अपनी जमा पूंजी भी खो बैठेंगे.
कितना धन चाहिए इसके बारे में कोई परफेक्ट फ़ॉर्मूला नहीं होता है. आपको अपने व्यापार की धन की आवश्यकता को जानने के लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट बना लेनी चाहिए और कितना धन किस किस चीज के लिए लगने वाला है और कहाँ कहाँ से आने वाला है यह निश्चित कर लेना चाहिए. इसमें थोडा cushioning और alternate का प्रावधान भी होना चाहिए ताकि किसी एक स्रोत से पैसा ना मिलने पर दुसरे स्रोत से ले सकें. कुल मिलाकर इतना प्रबंध हो जाना चाहिए की "साईं इतना दीजिये जमे कुटुंब समाय मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय." जरूरत से ज्यादा धन का व्यापार में होना भी नुकसान दायक होता है; इससे धन प्रबंधन में चुस्ती के बजाय शिथिलता आ जाती है जो की दीर्घकाल में हानिकारक होती है.
साख क्या है और कैसे बनाई जाती है? साख के न होने या साख के खोने के क्या परिणाम हो सकते हैं?
बुजुर्गों ने कहा है की "नामी चोर मर खाए और नामी साहूकार कमा के खाए". जब भी कहीं चोरी होती है तो पुलिस usual suspects को पकड़ कर मारपीट करती है और पूछताछ करती है. इसी तरह जिस व्यापारी की साख होती है उसे माल भी उधार में मिल जाता है और लोग नकद पैसा देकर या अग्रिम पैसा देकर माल खरीदते हैं. और यदि साख ना हो तो हमेशा पैसा पहले देना पड़ता है. साख के अनगिनत लाभ हैं और ना होने के नुकसान ही नुकसान हैं. तो यह साख मिलती कहाँ है? साख कहीं मिलती नहीं है बल्कि आपको अपने साफ सुथरे व्यवहार और लेन देन से और अपने माल की उच्च गुणवत्ता से बनानी पड़ती है. आपने अगर सौदा कर लिया तो चाहे लाभ हो या हानि आप उसे तोड़ेंगे नहीं, यह विश्वास अगर आपसे व्यव्हार करने वालों को है तो इसका मतलब है की आपकी बाज़ार में साख है. जहाँ साख की बात आती है वहां " चन्द्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार । पै दृढ़ श्री हरिचन्द्र कौ, टरै न सत्य विचार ।। " को जरूर याद किया जाता है.
क्या व्यापार बिना सरदर्द के किया जा सकता है?
यदि आप अपना व्यापार प्लानिंग से करते हैं और अल्प लाभ के लिए दीर्घकालिक लाभ कुर्बान नहीं करते हैं. समय पर काम को निपटाते हैं. कानूनों का पालन करते हैं और समय पर कर भरते हैं. लालच में पड़ कर गलत काम नहीं करते हैं तो आप को व्यापार कतई सर दर्द नहीं देगा. यदि आप अपने व्यापार मे खुश नहीं है तो फिर आपको ख़ुशी अन्यत्र ढूंढनी पड़ेगी और इस चक्कर में आप बुरी लतों में भी फँस सकते हैं. यदि आप समय पर भोजन नहीं कर रहे हैं, दिन भर चाय काफी पीते रहते हैं, रात को देर से घर लौटते हैं और खाना खा कर पसर जाते हैं और दुसरे दिन देर से उठ कर भाग दौड़कर दफ्तर पहुंचते हैं; अपने परिवार के लिए यदि आप समय नहीं निकाल सकते हैं और साल में एक बार उनके साथ विदेश यात्रा करके अपने जिम्मेदारी की इतिश्री करते हैं; तो समझिये व्यापार आपको रास नहीं आ रहा है. उपाध्याय जी कहते हैं की दुनियाँ में ढाई सुख हैं. पहला सुख रात को नींद ठीक से आना, दूसरा सुख सुबह पेट साफ होना. बाकी आधे सुख में सारी दुनियाँ के सुख हैं. यदि आप ठीक समय पर खायेंगे नहीं और सोयेंगे नहीं तो फिर पेट भी साफ नहीं होगा और इस प्रकार आप जीवन के संसार के सुखों से वंचित रह जाओंगे. दुनियां देखती रहेंगी की आप कितने बड़े बंगले में रहते हैं, कितनी बड़ी गाड़ी में घूमते हैं, लेकिन उन्हें क्या पता की आप कितने दुखी हैं. "आये हैं सो जायेंगे राजा रंक फकीर, कोई सिंघासन चढ़ी चले कोई बंधे जंजीर."
हर प्रकार के व्यापार पर कई प्रकार के कर लगते हैं? एक व्यापारी को आयकर, विक्री कर, उत्पाद शुल्क, सेवा शुल्क की क्या जानकारी होनी चाहिए?
चाणक्य ने कहा था राजा ने कर ऐसे वसूलना चाहिए जैसे मधुमक्खी फूल से मधु लेती है. यह उक्ति अगर आज के परिवेश में सही ना भी बैठती हो तो भी हर नागरिक का कर्तव्य है की वह अपने देश के कानून का पालन करे. इस पालन में करों का भुगतान एक बड़ा विषय है. समय पर कर के भुगतान ना करने से ब्याज व दंड का भुगतान करना पड़ता है जो की व्यापार के लाभ में कमी लाता है. हर व्यापारी को यह जानकारी होना जरूरी है की उनको कौन कौन से करों के लिए किन किन विभागों में पंजीकरण करवाना है, वार्षिक कितनी बिक्री करमुक्त है, कर भरने की तारीख व विवरणी भरने की अंतिम तिथि, इन सब चीजों का ज्ञान अत्यावश्यक है.
हर छोटे बड़े व्यापार में कई लोगों का योगदान होता है और कर्मचारी इसमें प्रमुख हैं? कर्मचारी को नियुक्त करने से उसके सेवा निवृत्त होने तक किन किन कानूनों का पालन करना होता है? कर्मचारी कानून की कितनी जानकारी एक व्यापारी को होनी चाहिए?
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है. आप चाहे कितने भी बुद्धिमान या बलवान या प्रसिद्ध क्यों ना हो आपको अपने व्यापार के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता होती है. प्रभु रामचंद्र को भी लंका विजय के लिए वानरों और रीछों की मदद लेनी पड़ी थी. यदि आप कुशल और इमानदार लोगों को अपने व्यापार में नियुक्त करते हैं और उनका योग्य प्रशिक्षण करते हैं, उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं तो आपको कभी निराश नहीं होना पड़ेगा. वहीं आपने यदि कर्मचारियों के नियुक्ति में सावधानी नहीं बरती तो आपका व्यापार चौपट होते देर नहीं लगेगी. उनकी सुख सुविधाओं का ध्यान रखते समय यह भी ध्यान रखा जाय की वह अपने कर्तव्यों/ जिम्मेदारी से विचलित ना हों. इसके लिए performance based incentives देना हितकर होता है. ऐसा ना हो की घोड़े की घास से दोस्ती हो जाय और दोस्ती निभाने के चक्कर में वह भूखा ही रह जाय. विभिन्न कानूनों के अंतर्गत कर्मचारियों के अधिकारों की जानकारी आपके कर्तव्यों की जानकारी होने से आप ऐसा कोई कदम नहीं उठाते हैं जिससे की आपको लेबर कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े और बिना काम किये कर्मचारी को वेतन देना पड़े.
क्या एक व्यापारी को लागत या पड़ता निकालना आना आवश्यक है? सही प्रकार से पड़ता न निकालने के क्या परिणाम या दुष्परिणाम हो सकते हैं?
व्यापार का मुख्य उद्देश धन कमाना है. यदि आप सस्ते में खरीदकर महंगे में बेचते हैं तो आपको लाभ होता है और इसका उल्टा होने पर हानी होती है. जहाँ तक खरीदने बेचने का सवाल हैं लागत या पड़ता निकालना कठिन नहीं होता है. लेकिन जहाँ कई प्रकार के उत्पाद बनाने की बात आती है तो उसकी लागत और पड़ता निकालने में कई प्रकार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागतों को ध्यान में रखना होता है. सही प्रकार से लागत मूल्य की जानकारी का ना होना हानी का कारण और व्यापार के बंद होने का कारण भी बन सकता है. ध्यान रहे की "आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया" नहीं होना चाहिए.
एक व्यापारी को वित्तीय लेखांकन की जानकारी क्यों और कितनी आवश्यक है?
वित्तीय लेखा व्यापार की वित्तीय स्थिति का दर्पण होता है. यदि आप वित्तीय लेखा में तज्ञ हैं तो आप अपने वित्तीय पत्रों से अपने व्यापार की वित्तीय स्थिति का जायजा ले सकते हैं और आपका व्यापार लाभ या हानी की और अग्रसर हो रहा है यह मालूम कर सकते हैं और आने वाली वित्तीय आपदा से बच सकते हैं. "तोरा मन दर्पण कहलाये, भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए".
व्यापार के संगठन कौन कौन से हैं और उसका चुनाव करते समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?
कोई भी व्यापार जब शुरू होता है तब छोटा ही होता है. इसीलिए शुरुवात में चाहे जो भी फॉर्म ऑफ़ organisation हो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. यदि आप अकेले मालिक हैं तो आप proprietorship में काम शुरू कर सकते हैं. यदि आप और लोगों के साथ मिलकर व्यापार कर रहे हैं तो भगीदारी या कंपनी बना कर कार्य शुरू कर सकते हैं. सही चुनाव के लिए आपको प्रत्येक व्यापार संगठन के लाभ व मर्यादाओं की जानकारी होनी आवश्यक होती है. प्रायः देखने में आया है की "प्राइवेट लिमिटेड कंपनी" का चुनाव लम्बे समय तक चलने वाले व्यापार के लिए अधिक उपयुक्त पाया गया है.
व्यापार का बीमा करना क्यों आवश्यक है और सही बीमा न करने से क्या नुकसान हो सकता है?
दुनियां में कुछ भी निश्चित नहीं है सिवाय अनिश्चितता के. कभी भी कुछ भी हो सकता है. एक त्सुनामी आती है और शहर का शहर डूब सकता है. ऐसे में यदि आपने अपने व्यापार और उत्पादन इकाई व उसमें रखे सामान का बीमा नहीं कराया है तो आपका तो बंटाधार हो जायेगा. उसी प्रकार चोरी, आग और विभिन्न प्रकार के कारणों से होने वाले नुकसानों को उपयुक्त प्रकार के बीमे कर लेने से नुकसान होने पर मुआवजा प्राप्त किया जा सकता है. वरना यही गाते रह जायेंगे "ज़िन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मकाम वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते".
व्यापार चाहे जिस किसी चीज का हो जमीन और भवन की आवश्यकता पड़ती है. जमीन के चुनाव और खरीदने के समय किस प्रकार की सावधानी बरतनी चाहिए? भवन बनाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
जमीन खरीदते समय यह ध्यान रखना जरूरी है की वह उत्पादन इकाई के निर्माण के लिए पर्याप्त होगी व आगे आने वाले समय में विस्तार के लिए भी समुचित होगी. सरकार द्वारा Industrial Development के लिए हर जिले में जमीन उपलब्ध कराइ जाती है जो की किफ़ायत दर पर ९९ वर्षों के पट्टे (lease ) पर दी जाती है. यदि सरकारी जमीन उपलब्ध ना हो तो यह देख लेना जरुरी है की वहां तक पहुँचने के लिए रोड अच्छे हैं और वह या तो कच्चे माल के उपलब्ध होने की जगह के पास हो या फिर बने माल की खपत वाली जगह, या कोई बड़ा व्यापार केंद्र. जिससे समान लेन ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की सुविधा होती है. ऐसे और भी कई मुद्दों पर ध्यान देना जरूरी होता है. जमीन ऐसी भी ना हो की वर्शारितु में बाढ़ का पानी ही भरा रहे. भवन बनाते समय यह सावधानी बरतनी चाहिए की भविष्य में यदि विस्तार करें तो तोड़ फोड़ की कम से कम आवश्यकता पड़े.
आज हम ज्ञान अर्थव्यवस्था के युग में जी रहे हैं. एक व्यापारी को यह जानना आवश्यक है की उनका बौद्धिक सम्पदा अधिकार क्या हैं और उनकी रक्षा के लिए उन्हें क्या करना चाहिए?
आप यदि अपने उत्पाद को किसी trade mark के अंतर्गत बेचते हैं तो आपको चाहिए की पंजीकरण कर लिया जाय. पंजीकरण करने से आप उस trade mark का उपयोग बिना किसी रोक टोक के अपने व्यापार के लिए कर सकेंगे और आपकी साख व ख्याति का फायदा आपके व्यापार को लम्बे समय तक मिलता रहेगा. उसी प्रकार कॉपी राईट व patent पंजीकरण आपके द्वारा सृजित बौद्धिक सम्पदा अधिकारों की रक्षा करता है.
आपके कॉरपोरेट कस्टमर्स एंड सप्लायर्स के बारे में आपको क्या जानकारी रखनी चाहिए?
जब भी आप किसी कंपनी के साथ लेन देन करते हैं तो यह निश्चित कर लें की वह कंपनी वाकई में पंजीकृत है या नहीं. उस कंपनी का पंजीकृत कार्यालय कहाँ है और उस कंपनी के निदेशक कौन हैं? इन चीजों की जानकारी आने वाले समय में आपके लिए लाभदायक सिद्ध होगी.
क्या एक व्यापारी को पर्यावरण कानून की जानकारी होनी चाहिए या पर्यावरण के प्रति उसकी जिम्मेदारी क्या है?
”रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सून ! पानी गए न उबरे, मोती मानुस चून !” औद्योगिक इकाइयों द्वारा उत्पादन में पानी का भरपूर उपयोग होता है लेकिन कईयों द्वारा की गई जिम्मेदाराना हरकतों के कारण पानी के श्रोत जहरीले होते जा रहे हैं और मानव जाति के विनाश का खतरा पर्यावरण के विनाश के साथ दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है. पर्यावरण कानून, उनकी जानकारी और ईमानदारी से पालन करना हर व्यक्ति और हर व्यापारी का कर्तव्य है और इसे पालन कर के कानून द्वारा दण्डित होने से बचा जा सकेगा.
इसके अलावा भी कई प्रकार की जानकारियां व्यापार विशेष को लेकर होती है जिसकी जानकारी का होना एक व्यापारी को अपनी कानूनी जिम्मेदारी निभाने और हानि से बचने और लाभ के बढ़ाने में सहयोगी होती है जैसे:
कुछ विशेष प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए और पिछड़े इलाकों में रोजगार मुहैया करवाने के हिसाब से लगाने वाली इकाइयों को सरकार द्वारा सब्सिडी और कर रियायतें दी जाती है. किन उत्पादों के उत्पादन से व किन स्थानों पर उत्पादन इकाई लगाने से रियायतें मिलती है, शुरुवात से इन बातों की जानकारी होने से इकाई के लगाने के स्थान के चुनाव में, पूंजी की जरूरत के बारे में निर्णय लेने में और लागत मूल्य के आकलन करने में सुविधा होती है. उसी प्रकार विदेश से माल आयत करना हो या उत्पादित माल निर्यात करना हो तो फेमा व इम्पोर्ट एक्सपोर्ट से सम्बंधित कानून व माल भेजने व मंगवाने की प्रक्रियाओं व उसमे लगने वाले समय की मुलभुत जानकारी आवश्यक है.
जो व्यापारी उत्पादित वस्तुओं को पैक करके रिटेल में बेचते हैं उन्हें पेकेट में कितनी सामग्री भरी जाय, किस प्रकार के पेकेट इस्तेमाल किया जाएँ, पेकेट पर क्या जानकारी देनी चाहिए इन सब बातों के जानकारी होनी आवश्यक है.
एक व्यापारी जब दुसरे व्यापारी के साथ जो भी लेन देन का व्यवहार करता हैं वह अनुबंध कानून के अंतर्गत आता है. अनुबंध कानून की मुलभुत जानकारी हर व्यापारी को होनी ही चाहिए.
यदि आपका बेचा हुवा माल दर्शित गुणवत्ता का नहीं है और उसके कारण यदि आपके उपभोक्ता का नुकसान होता है तो वह आपके ऊपर नुकसान की भरपाई के लिए मुक़दमा दायर कर सकता है. इससे निपटने के लिए आपको उपभोक्ता संरक्षण कानून के विभिन्न पहलुओं का मुलभुत ज्ञान आवश्यक है.
अपने सलाहकार कैसे चुनें और उनके साथ कैसा व्यव्हार करें?
गोस्वामी तुलसीदास जी ने सुन्दरकाण्ड में कहा है की "सचिव बैद गुरु तीन जौं प्रिय बोलहि भय आस, राज धर्म तन तीन कर होहि बेगहि नास." यह उक्ति सिर्फ रावण के लिए ही नहीं बल्कि हर काल के हर राजा और हर व्यक्ति के लिए समान रूप से लागू है. आप अपने सलाहकार का चयन करते समय यह देख लें की उनकी निपुणता और साख कैसी है. इसके बाद अप उनकी सलाह को सुनें और जहाँ तक हो सके अमल में लायें. ऐसा जरूरी नहीं की उनकी हर सलाह का अक्षरशः पालन कर सकते हैं. लेकिन कभी उनका मान भंग ना हो इसकी भी सावधानी बरतें. चाकू चाहे फल पर गिरे या फल चाकू पर, कटना तो फल को ही है.
आखिर धन का सही उपयोग क्या है?
जीवन के तीन मुख्य अवस्थाएं हैं, बचपन, जवानी और बुढ़ापा. बचपन में समय और उर्जा बहुत होती है लेकिन पैसा नहीं रहता है. जवानी में उर्जा और पैसा दोनों रहते हैं पर समय नहीं होता है. बुढ़ापे में पैसा और समय तो बहुत होता है पर उर्जा में कमी आ जाती है. यानि की दाँत है तो चने नहीं है और चने है तो दाँत नहीं है. प्रायः यह देखा गया है की मनुष्य जीवन भर धन कमाने में लगा रहता है लेकिन जब बुढ़ापा पास आता है तो कमाए धन को परोपकार में लगाने की कोशिश करता है. क्योंकि "पूत कपूत तो क्यों धन संचय; पूत सपूत तो क्यों धन संचय." में सभी विश्वास करते हैं और जहाँ तक बन सके अपने बच्चों को धन से ज्यादा सद्गुण व अच्छी परवरिश देने की कोशिश करते हैं. Warren Buffet और Bill Gates जैसे विश्वप्रसिद्ध और अति धनवानों ने अपने जीवन में बहुत धन कमा लिया. अब वह कमाए धन को परमार्थ में लगाने की चेष्टा कर रहे हैं. इससे यह सिद्ध होता है की सिर्फ धन कमाना ही जरूरी नहीं है बल्कि उसका सदुपयोग उससे भी महत्वपूर्ण है. "एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल".
व्यापार और उसकी सामाजिक जिम्मेदारी: व्यापार के लिए लगने वाली जमीन, भवन, वस्तुएं और अन्य सामग्री और लोग समाज और पर्यावरण से आते हैं इसीलिए व्यापार की सामाजिक जिम्मेदारी एक साधारण व्यक्ति से ज्यादा होती है. आजकल CSR (Corporate Social Responsibility ) की बात तो बहुत होती है लेकिन हमारे देखते देखते शिक्षा और स्वस्थ्य जैसे जीवन की मुलभुत आवश्यकताओं को लाभ की बलि चढ़ा दिया गया. पहले CSR शब्द तो प्रचलित नहीं था लेकिन व्यापारी लोग अपनी जिम्मेदारी समझकर जगह जगह स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, प्याऊ, धर्मशाला इत्यादि बनाते और धर्मार्थ चलते थे जिससे समाज के सारे लोगों को लाभ मिलता था. सिर्फ धन कमाने और संचय करने तक ही वे लोग सीमित नहीं रहते थे. ऐसा नहीं है की आजकल अच्छे काम नहीं हो रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है की आजकल "खाते चने हैं बताते बादाम है" यानि दिखावे की प्रवृत्ति अधिक हो गई है.
मैं एक पुस्तक लिख रहा हूँ जिसका शीर्षक "नए व्यापार के लिए मार्गदर्शिका/ पथप्रदर्शिका - बातें जिन्हें जानकर एक नया व्यवसाई भविष्य में आने वाले खतरों से बच सके". जिन मुद्दों और विषयों का इस पुस्तक में समावेश होगा उनकी एक झलक मैंने इस लेख के द्वारा देने की चेष्टा की है. आगे आने वाले अंकों में मैं एक एक कर सारे विषयों पर चर्चा करूँगा. मैं चाहता हूँ की मैंने जो ज्ञान अपने जीवन में पाया है और अनुभव प्राप्त किये हैं उन्हें आप लोगों से बांटूं और इसके द्वारा किसी को लाभ हो तो इसके मुझे बेहद ख़ुशी होगी. आगे आने वाले जीवन में मैं मार्गदर्शक का किरदार अदा करना चाहता हूँ और उच्च शिक्षार्थियों को भी अपने अनुभव का लाभ देना चाहता हूँ. उच्च शिक्षा संस्थानों के आमंत्रण पर मैं इन विषयों पर व्याख्यान देना पसंद करूँगा. आपको यह लेख कैसा लगा और इसमें किन चीजों पर किस प्रकार की जानकारी की आपकी अपेक्षा है मुझे मेरे ईमेल asawaramanuj@gmail.com पर जरूर लिखें.